कहा जाता है कि सच्चा लोकतंत्र वही है जहाँ इंसान अपने अधिकारों को साथ ले लेकर पैदा होता है पर हमारा अपना भारत देश इस कथन पर कितना खरा उतरता है इस सच को हम अछ्छी तरह से जानते हैं। आज भी हमारे देश में करोड़ों लोगो को ये भी नहीं पता है की हमारे अधिकार क्या और कौन-कौन से हैं। खेद की बात तो यह है कि देश की आधी आबादी जिस में महिलाएं शामिल हैं वे तो लगता है की बिना किसी अधिकारों के ही काम चला रही है। महिलाओं को अधिकारों से लैस करने में हमारा समाज आज भी आना कानी करता रहा है।
भारत जैसे देश में महिला सशक्तिकरण का काम दुरूह इसलिए भी है क्योंकि सशक्तिकरण की इस प्रक्रिया में एक तो पुरुषों, महिलाओं और युवाओं के दिलो-दिमाग में से लैंगिक पूर्वाग्रह को निकालना है और इसके बदले में सकारात्मक दृष्टिकोण का प्रत्यारोपण करना है। इस काम को अंजाम देने के लिए परिवार और समाज का समर्थन जरूरी है बिना उनके समर्थन के महिलाओं की उन्नति की दिशा में कोई काम नहीं हो सकता।
अभी कुछ समय पहले तक समाज के व्यवहार में परिवर्तन लाने के साधन सीमित हुआ करते थे।पिछले दशक में हुई संचार क्रांति में हुए परिवर्तनो ने विश्व भर के लोगों को मानों एक छोटे से दायरे में ला दिया जिससे लोगों में आपसी सामंजस्यता का इजाफा हुआ और संसार भर की महिलाओं में जागरूकता बढ़ी।
इन सब आधुनिक समय की चेतनाओं के बावजूद आज की वास्तविकता यह है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने महिलाओ की भूमिका को पारंपरिक स्टीरियो टाइप बना रखा है जो महिलाओं की नकारात्मक छवि ही पेश करती है।
और दूसरी तरफ यह भी सच है कि पूरे संसार में महिलाओं को पुरुषों के बराबर हक नहीं है। तभी विश्व स्तर पर महिलाओं की अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए व्यापक स्तर पर कानून बनाये गए है।
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